Thursday, February 7, 2019

SANKATMOCHAN HANUMANASHTAK

                       संकटमोचन  हनुमानअष्टक 



बाल समय रबि भक्षि लियो तब , तीनहुं लोक भयो अँधियारो।
 ताहि सों त्रास भयो जग को , यह संकट काहु सों जात न टारो।।
देवन आनि करी बिनती तब , छाँड़ी दियो रबि कष्ट निवारो। 
को नहिं जानत है जगमें कपि ,संकटमोचन नाम तिहारो।।१।। 

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि , जात महाप्रभु पंथ निहारो।
 चौकिं महा मुनि साप दियो तब , चाहिए कौन बिचार बिचारो।।
कै  द्विज रूप लिवाय महाप्रभु , सो तुम दास के सोक निवारो। 
को नहिं जानत है जगमें कपि , संकटमोचन नाम तिहारो।।२।।

अंगद के सँग लेन गये सिय , खोज कपीस यह बैन उचारो।
 जीवत न बचिहौ हम सों जुं  , बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।। 
हेरि थके तट सिन्धु सबै तब लाय , सिया-सुधि प्रान उबारो। 
को नहिं जानत है जगमें कपि , संकटमोचन नाम तिहारो।।३।।

रावण त्रास दई सिय को तब , राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
 ताहि समय हनुमान महाप्रभु ,जाय महा रजनीचर मारो।।
चाहत सीय अशोक सों आगि सु , दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो। 
को नहिं जानत है जगमें कपि , संकटमोचन नाम तिहारो।।४।।

बान लग्यो उर लक्षिमन के तब , प्राण तजे सुत रावन मारो।
 लै  गृह  बैद्य  सुषेन  समेत , तबै गिरि द्रोन सु बीर उपरो।। 
आनि सजीवन हाथ देई तब , लक्षिमन के तुम प्रान उबारो। 
 को नहिं जानत है जगमें कपि , संकटमोचन नाम तिहारो।।५।।

रावण युद्ध अजान कियो तब , नाग की फाँस सबै सिर डारो।
 श्रीरघुनाथ समेत  सबै  दल , मोह भयो यह संकट भारो।। 
आनि खगेस तबै हनुमान जु , बन्धन काटि सुत्रास निवारो। 
को नहिं जानत है जगमें कपि , संकटमोचन नाम तिहारो।।६।।

बन्धु समेत  जबै  अहिरावन , लै  रघुनाथ पताल सिधारो।
 देविहिं पूजि भलि बिधि सों बलि , देउ सबै मिलि मन्त्र बिचारो।। 
जाय सहाय भयो तब ही , अहिरावन सैन्य समेत सँहारो।
को नहिं जानत है जगमें कपि , संकटमोचन नाम तिहारो।।७।।

काज किये बड़ देवन के तुम , वीर महाप्रभु देखि बिचारो।
 कौन सो संकट मोर गरीब को , जो तुमसों नहिं जात है टारो।।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु , जो कछु संकट होय हमरो।
 को नहिं जानत है जगमें कपि , संकटमोचन नाम तिहारो।।८।।

लाल देह लाली लसे अरु धरि लाल लँगूर
बज्र  देह दानव दलन जय जय जय कपि सूर।। 



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