Sunday, February 24, 2019

SHIV STUTI

शिव स्तुति 



श्री गिरिजापति बंदि कर ,चरण मध्य शिर नाय। 
कहत अयोध्यादास तुम , मो पर करहो सहाय।।

नन्दी की सवारी नाग अंगीकार धारी, नित संत सुखकारी नीलकंठ त्रिपुरारी हैं। 
गले मुण्डमाला धारी सिर सोहे जटाधारी,वाम अंग मैं बिहारी गिरिराज सुतवारी हैं। 
दानी देख भारी शेष शारदा पुकारी,काशीपति मदनारी कर शूल चक्रधारी हैं। 
कला उजियारी लख देव सो निहारी, यश गावें वेद चारी सो हमारी रखवारी हैं।।१।।

शम्भु बैठे हैं विशाला पीवैं भंग को प्याला, नित रहें मतवाला अहि अंग पे चढ़ाये हैं। 
गले सोह मुण्डमाला कर डमरू विशाला, अरु ओढ़े मृगछाला भस्म अंग में लगाये हैं। 
संग सुरभी सुतमाला कर भक्तन प्रतिपाला, मृत्यु हरे अकाला शीश जटा को बढ़ाये हैं। 
कहैं रामलाला मोहिं करो तुम निहाला अब, गिरिजापति कैलाश जैसे काम को जलाये हैं।।२।।

मारा है जलंधर और त्रिपुर को संहारा जिन, जारा है काम जाके शीश गंगधारा हैं। 
धारा है अपार जासु महिमा तीनों लोक, भाल में हैं इन्दु जाके सुषमा के सारा सारा है। 
सारा है बात सब खोल खायो हलाहल जानि, भक्त के अधारा जाहिं वेदन उचारा है। 
चारा है भाग जाके द्वारा है गिरीश कन्या, कहत अयोध्यादास सोई मालिक हमारा है।।३।।

अष्ट गुरु ज्ञानी अरु मुख वेदवानी, सोहे भवन में भवानी सुख सम्पत्ति लहा करें। 
मुण्डन की माला जाके चन्द्रमा ललाट सोहें, दासन के दास जाके दारिद दहा करें। 
चारों द्वार बन्दी जाके द्वारपाल नन्दी, कहत कवि अनन्दी नर नाहक हा हा करें। 
जगत रिसाय यमराज की कहा बसाय, शंकर सहाय तो भयंकर कहा करै।।४।।

गौर   शरीर    में   गौरि   विराजत  ,  मोर   जटा   सिर   सोहत   जाके। 
नगन   को   उपवीत   लसै   अयोध्या  ,  कहें   शशि   भाल   में   ताके। 
दान  करैं  पल  में  फल  चारि  और  टारत  अंक   लिखे   विधना   के। 
शंकर   नाम   निशंक   सदाहि   भरोसा  रहैं  निशिवासर   ताके।।५।।

।। दोहा।।

मंगसर मास हेमन्त ऋतु , छठ  दिन है शुभ बुद्ध। 
कहत अयोध्यादास तुम, शिव के विनय समृद्ध।।

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