Saturday, March 9, 2019

SHANI CHALISA WITH LYRICS IN HINDI श्री शनि चालीसा । जय गणेश गिरिजा सुवन. मंगल करण कृपाल।

श्री  शनि चालीसा 



दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन. मंगल करण कृपाल। 
दीनन के दुःख दूर करि. कीजै नाथ निहाल
जय जय श्री शनिदेव प्रभु. सुनहु विनय महाराज।    
करहु कृपा हे रवि तनय. राखहु जन की लाज 
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छवि छाजै
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृश्टि भृकुटि विकराला
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिये माल मुक्तन मणि दमके
कर में गदा त्रिशूल कूठारा। पल बिच करैं अरिहिं संसारा
पिंगल, कृश्णों, छाया, नन्दन। यम कोणस्थ, रौद्र, दुःखभंजन
सौरी, मन्द, शनि, दशनामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा
जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं। रंकहुं राव करै क्षण माहीं
पर्वतहु तृण होई निहारत। तृणहु को पर्वत करि डारत
राज मिलत बन रामहिं दीन्हा। कैकेइहुँ की मति  हरि लीन्हा
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चतुराई
लखनहिं शक्ति विकल करि डारा। मचिगा दल में  हाहाकारा 
रावण की गति-मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर  निगलि हारा
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो 
विनय राग दीपक महँ कीन्हो। तव प्रसन्न प्रभु हवै सुख दीन्हो
हरिश्चन्द्र  नृप नारी बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी- मीन कूद गई पानी
श्री शंकरहिं गहयो जब जाई। पारवती को सती कराई
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो 
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला
शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई
वाहन प्रभु के सात सुजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना
जम्बुक सिंह आदि नखधारी। सो फ़ल जयोतिष कहत पुकारी
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवै। हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं
 गर्दभ हानि करै बहु काजा। गर्दभ सिद्ध कर राज समाजा
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पति नष्ट करावै
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै 
 अदभुत नाथ दिखावै लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत
कहत रामसुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा
दोहा
पाठ शनिश्चर देव को, की हों 'विमल' तैयार।

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