Wednesday, February 27, 2019

SRI SARASWATI CHALISA

श्री  सरस्वती चालीसा 

।।दोहा।।
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि। बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि।।
पूर्ण जगत में व्यापत तव महिमा अमित अनंतु। दुष्टजनों के पाप को, मातु तुही अब हन्तु।।
जय श्रीसकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी।।
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी।।
रूप चतुर्भुर्ज धारी माता। सकल विश्र्व अन्दर विख्याता।।
जग में पाप बुद्धि जब होती। तबहि धर्म की फीकी ज्योती।।
तबहि मातु का निज अवतारा। पाप हीन करती महितारा।।
बाल्मीकि  जी   थे   हत्यारा। तव  प्रसाद  जानै  संसारा।।
रामचरित  जो  रचे  बनाई। आदि कवि पदवी को पाई।।
कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता।।
 तुलसी सूर आदि विद्वाना। और भये जो ज्ञानी नाना।।
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा। केवल कृपा आपकी अम्बा।।
करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहिं जानी।।
पुत्र करइ अपराध बहूता। तेहि न धरइ चित एकउ माता।।
राखु लाज जननी अब मेरी। विनय करउं भांति बहुतेरी।।
में अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा।।
मधुकैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना।।
समर हज़ार पांच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा।।
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला। बुद्धि विपरीत भई खलहाला।।
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी।।
चण्ड मुण्ड जो थे विख्याता। क्षण महु संहारे उन माता।।
रक्त बीज से समरथ पापी। सुर मुनि हृदय धरा सब कांपी।।
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा। बार बार बिनवउं जगदंबा।।
जगप्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा। क्षण में बांदे ताहि तूं अम्बा।।
भरत-मातु बुद्धि फेरेउ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई।।
एहि विधि रावन वध तू कीन्हा। सुर नर मुनि सबको सुख दीन्हा।।
को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना।।
विष्णु रूद्र जस सकैं न मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी।।
रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानवभक्षी।।
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा।।
दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता।।
नृप कोपित को मारन चाहै। कानन में घेरे मृग नाहै।।
सागर मध्य पोत के भंगे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे।।
भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में।।
नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करइ न कोई।।
पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि भाई।।
करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा।।
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै। संकट रहित अवश्य हो जावै।।
भक्ति मातु की करै हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा।।
बंदी पाठ करै सत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा।।
रामसागर बांधि हेतु भवानी। कीजै कृपा दास निज जानी।।
।।दोहा।।
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप। डूबन से रक्षा करहु पारूं न मैं भव कूप।।
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु। रामसागर अधम को आश्रय तू दे दातु।।



Sunday, February 24, 2019

SRI KRISHNA CHALISA

श्री कृष्ण  चालीसा 


बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम। 
अरुण अधर जनु बिम्ब फल,नयन कमल अभिराम।।
पूर्ण इन्द्र,अरविन्द मुख,पीताम्बर शुभ साज। 
जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज।।

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन। जय वसुदेव देवकी नन्दन।।
जय यसुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के द्रुग तारे।।
जय नट - नागर नाग नथइया। कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया।।
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो।।
वंशी मधुर अधर धरि टेरो। होवे पूर्ण विनय यह मेरो।।
आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की राखो।।
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे।।
राजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजन्ती माला।।
कुण्डल श्रवण पित पट आछे। कटि किंकिणी काछनी काछे।।
नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छबि लखि,सुर नर मुनिमन मोहे।।
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले। आओ कृष्ण बांसुरी वाले।।
करि पय पान, पुतनहि तारयो। अका बका कागासुर मारयो।।
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला। भै शीतल, लखतहिं नन्दलाला।।
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई। मूसर धार वारि वर्षाई।।
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो। गोवर्धन नख धारि बचायो ।।
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई। मुख महं चौदह भुवन दिखाई।।
दुष्ट कंस अति उधम मचायो। कोटि कमल जब फूल मंगायो।।
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें। चरणचिन्ह  दै  मार्यो।।
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई। उग्रसेन कहं राज दिलाई।।
महि से मृतक छहों सुत लायो। मातु देवकी शोक मिटायो।।
भौमासुर मुर दैत्य संहारी। लाये षट दश सहसकुमारी।।
दै भीमहिं तृण चीर सहारा। जरासिंधु राक्षस कहं मारा।।
असुर बकासुर आदिक मारयो। भक्तन के तब कष्ट निवारयो।।
दीन सुदामा के दुःख टारयो। तंदुल तीन मूंठी मुख डारयो।।
प्रेम के साग विदुर घर मांगे। दुर्योधन के मेवा त्यागे।।
लखी प्रेम की महिमा भारी। ऐसे याम दीन हितकारी।।
भारत के पारथ रथ हांके। लिए चक्र कर नहिं बल ताके।।
निज गीता के ज्ञान सुनाये। भक्तन हृदय सुधा वर्षाये।।
मीरा थी ऐसी मतवाली। विष पि पी गई बजा कर ताली।।
राना भेजा सांप पिटारी। शालिग्राम बने बनवारी।।
निज माया तुम विधिहिं दिखायो। उर ते संशय सकल मिटायो।।
तब शत निन्दा करि तत्काला। जीवन मुक्त भयो शिशुपाला।।
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई। दीनानाथ लाज अब जाई।।
तुरतहि बसन बने नन्दलाला। बढे चीर भै अरि मुहं काला।।
अस अनाथ के नाथ कन्हैया। डूबत भंवर बचावइ नइया।।
सुन्दरदास आस उर धारी। दया दृष्टि कीजै बनवारी।।
नाथ सकल मम कुमति निवारो। क्षमहु बेगि अपराध हमरो।।
खोलो पट अब दर्शन दीजै। बोलो कृष्ण कन्हैया की जै।।

।।दोहा।।
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि। 
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल ,लहै पदारथ चारि।।

  


SHIV STUTI

शिव स्तुति 



श्री गिरिजापति बंदि कर ,चरण मध्य शिर नाय। 
कहत अयोध्यादास तुम , मो पर करहो सहाय।।

नन्दी की सवारी नाग अंगीकार धारी, नित संत सुखकारी नीलकंठ त्रिपुरारी हैं। 
गले मुण्डमाला धारी सिर सोहे जटाधारी,वाम अंग मैं बिहारी गिरिराज सुतवारी हैं। 
दानी देख भारी शेष शारदा पुकारी,काशीपति मदनारी कर शूल चक्रधारी हैं। 
कला उजियारी लख देव सो निहारी, यश गावें वेद चारी सो हमारी रखवारी हैं।।१।।

शम्भु बैठे हैं विशाला पीवैं भंग को प्याला, नित रहें मतवाला अहि अंग पे चढ़ाये हैं। 
गले सोह मुण्डमाला कर डमरू विशाला, अरु ओढ़े मृगछाला भस्म अंग में लगाये हैं। 
संग सुरभी सुतमाला कर भक्तन प्रतिपाला, मृत्यु हरे अकाला शीश जटा को बढ़ाये हैं। 
कहैं रामलाला मोहिं करो तुम निहाला अब, गिरिजापति कैलाश जैसे काम को जलाये हैं।।२।।

मारा है जलंधर और त्रिपुर को संहारा जिन, जारा है काम जाके शीश गंगधारा हैं। 
धारा है अपार जासु महिमा तीनों लोक, भाल में हैं इन्दु जाके सुषमा के सारा सारा है। 
सारा है बात सब खोल खायो हलाहल जानि, भक्त के अधारा जाहिं वेदन उचारा है। 
चारा है भाग जाके द्वारा है गिरीश कन्या, कहत अयोध्यादास सोई मालिक हमारा है।।३।।

अष्ट गुरु ज्ञानी अरु मुख वेदवानी, सोहे भवन में भवानी सुख सम्पत्ति लहा करें। 
मुण्डन की माला जाके चन्द्रमा ललाट सोहें, दासन के दास जाके दारिद दहा करें। 
चारों द्वार बन्दी जाके द्वारपाल नन्दी, कहत कवि अनन्दी नर नाहक हा हा करें। 
जगत रिसाय यमराज की कहा बसाय, शंकर सहाय तो भयंकर कहा करै।।४।।

गौर   शरीर    में   गौरि   विराजत  ,  मोर   जटा   सिर   सोहत   जाके। 
नगन   को   उपवीत   लसै   अयोध्या  ,  कहें   शशि   भाल   में   ताके। 
दान  करैं  पल  में  फल  चारि  और  टारत  अंक   लिखे   विधना   के। 
शंकर   नाम   निशंक   सदाहि   भरोसा  रहैं  निशिवासर   ताके।।५।।

।। दोहा।।

मंगसर मास हेमन्त ऋतु , छठ  दिन है शुभ बुद्ध। 
कहत अयोध्यादास तुम, शिव के विनय समृद्ध।।

Monday, February 18, 2019

SRI SHIV CHALISA

श्री  शिव चालीसा 


।।दोहा।।

जय गणेश गिरिजासुवन,मंगल मूल सुजान। 
कहत अयोध्यादास तुम,देउ अभय वरदान।।

जय गिरिजापति दीनदयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला।।
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के।।
अंग गौर सिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाये।।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मुनि मोहे।।
मैना मातु कि हवै दुलारी। वाम अंग सोहत छवि न्यारी।।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी।।
नंदि गणेश सोहैं तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे।।
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ।।
देवन जबहीं जाय पुकारा। तबहीं दुःख प्रभु आप निवारा।।
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी।।
तुरत षडानन आप पठायउ। लव निमष महं मारि गिरायउ।।
आप जालंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा।।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। तबहिं कृपा करि लीन बचाई।।
किया तपहिं भगीरथ भारी। पुरव प्रतिज्ञा तासु पुरारी।।
दानिन महं तुम सम कोइ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहि।।
वेद माहि महिमा तब गाई। अकथ अनादि भेद नहीं पाई।।
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला।।
कीन्ह दया तहं करी सहाई। नीलकंठ तव नाम कहाई।।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा।।
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई।।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रशन्न दिये इच्छित वर।।
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सबके घट वासी।।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावैं। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै।।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो।।
ले त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो।।
मात -पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई।।
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी।।
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोइ जांचे सो फल पाहीं।।
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।।
शंकर हो संकट के नाशन। विघ्न विनाशन मंगल कारन।।
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद सारद शीश नवावैं।।
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय।।
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत हैं शम्भु सहाई।।
ऋनियां जो कोइ हो अधिकारी। पाठ करै सो पावन हारी।।
पुत्र होन कर इच्छा कोई। निश्यच शिव प्रसाद तेहि होई।।
पण्डित त्रयोदशी को लावै। ध्यानपूर्वक होम करावै।।
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। तन नहिं ताके रहै कलेशा।।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावै। शंकर सम्मुख पाठ सुनावै।।
जन्म -जन्म के पाप नसावै। अन्त धाम शिवपुर में पावै।।
कहत अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी।।

।। दोहा।।

नित्य नेम उठि प्रात ही ,पाठ करो चालीस। 
तुम मेरी मनोकामना ,पूर्ण करो जगदीश।।
मगसिर छठि हेमन्त ऋतु ,संवत चौसठ जान। 
स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण।।

Sunday, February 17, 2019

SRI VINDHESHWARI CHALISA

श्री विन्ध्येश्वरी  चालीसा 


नमो नमो विन्ध्येश्वरी,  नमो नमो जगदम्ब। सन्तजनों के काज में करती नहीं विलम्ब।।
जय जय जय विन्ध्याचल रानी। आदि शक्ति जग विदित भवानी।।
सिंहवाहिनी जय जग माता। जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता।।
कष्ट निवारिणि जय जग देवी। जय जय संत असुर सुरसेवी।।
महिमा अमित अपार तुम्हारी। शेष सहस मुख वर्णत हारी।।
दीनन के दुख हरत भवानी। नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी।।
सब कर मनसा पुरवत माता। महिमा अमित जगत विख्याता।।
जो जन ध्यान तुम्हारो लावे। सो तुरतहि वांछित फल पावे।।
तुही वैष्णवी तुही रुद्राणी। तुहि शारदा अरु ब्राह्मणी।।
रमा राधिका श्यामा काली। तुही मात सन्तन प्रतिपाली।।
उमा माधवी चण्डी ज्वाला। वेगि मोहि पर होहु दयाला।।
तुही हिंगलाज महारानी। तुही शीतला अरु विज्ञानी।।
दुर्गा दुर्ग विनाशिनि माता। तुही लक्ष्मी जग सुखदाता।।
तुही जाह्नवी अरु इन्द्राणी। हेमावती अम्ब निर्वाणी।।
अष्टभुजा बाराहिनि देवा। करत विष्णु शिव जाकर सेवा।।
चौसट्टी देवी कल्याणी। गौरि मंगला सब गुणखानी।।
पाटन मुम्बा दन्त कुमारी। भद्रकालि सुन विनय हमारी।।
वज्रधारिणी शोक नाशिनि। आयु रक्षिणी विन्ध्यवासिनी।।
जया और विजया बैताली। मातु संकटी अरु बिकराली।।
नाम अनन्त तुम्हार भवानी। बरनै किमि मानुष अज्ञानी।।
जापर कृपा मातु तव होई। तो वह करै चहै मन जोई।।
कृपा करहु मो पर महरानी। सिध करिये अब यह मम बानी।।
जो नर धरै मातु को  ध्याना। ताको सदा होय कल्याना।।
बिपत्ति ताहि सपनेहु नहिं आवै। जो देवी का जाप करावै।।
जो नर कहे ऋण होय अपारा। सो नर पाठ करे सतबारा।।
निश्चय ऋण मोचन होइ जाई। जो नर पाठ करै मन लाई।।
अस्तुति जो नर पढ़े पढावै। या जग में सो बहु सुख पावै।।
जाको ब्याधि सतावै भाई। जाप करत सब दूर पराई।।
जो नर अति बन्दी महं होई। बार हजार पाठ कर सेई।।
निश्चय बन्दी ते छुटि जाई। सत्य वचन मम मानहु भाई।।
जापर जो कछु संकट होई। निश्चय देविहिं सुमिरै सोई।।
जा कहँ पुत्र होय नहिं भाई। सो नर या विधि करे उपाई।।
पांच वर्ष जो पाठ करावै। नौरातर महँ बिप्र जिमावै।।
निश्चय होहिं प्रसन्न भवानी। पुत्र देहि ताकहँ  गुणखानी।।
ध्वजा नारियल आन चढ़ावै। विधि समेत पूजन करवावै।।
नितप्रति पाठ करै मन लाई। प्रेम सहित नहिं आन उपाई।।
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा। रंक पढ़त होवे अवनीसा।।
यह जनि अचरज मानहुं भइ। कृपा दृष्टि जा पर होइ जाई।।
जय जय जय जगमातु भवानी। कृपा करहुं मोहिं पर जन जानी।।

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SRI DURGA CHALISA

                           श्री दुर्गा  चालीसा 




नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अम्बे दुःख हरनी।।
निराकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी।।
शशि ललाट मुख महा महा विशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला।।
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे।।
तुम संसार शक्ति लय कीना। पालन हेतु आन्न धन दीना।।
अन्नपूर्णा हुइ जग पला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला।।
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें।।
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।।
धरा रूप नरसिंह को अम्बा। प्रगट भई फाड़कर खम्बा।।
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो।।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाही।।
क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा।।
हिंगलाज में तुम्हीं भवनी। महिमा अमित न जाय बखानी।।
मातंगी धूमावति माता। भुवनेश्वरि बगला सुखदाता।।
श्री भैरव तारा जग तारिणि। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणि।।
केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी।।
कर में खप्पर खड्ग विराजे। जाको देख काल डर भाजे।।
सोहे अस्त्र और तिरशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला।।
नगर कोटि में तुम्हीं विराजत। तिंहु लोक में डंका बाजत।।
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे।।
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी।।
रूप कराल कलिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा।।
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब।।
अमरपुरी अरु बासव लोका। तव महिमा सब रहें अशोका।।
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर नारी।।
प्रेम भक्ति से जो यश गावे। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे।।
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म -मरण ताको छुटि जाई।।
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।।
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो।।
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।।
शक्ति रूप को मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछतायो।।
शरणागत हुइ कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी।।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा।।
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो।।
आशा तृष्णा निपट सतावे। मोह मदादिक सब विनशावै।।
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।।
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला।।
जब लगि जियौं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं।।
दुर्गा चालीसा जो नित गावै। सब सुख भोग परम पद पावै।।
देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी।।

Saturday, February 16, 2019

Shri Ganesh Chalisa | श्री गणेश चालीसा

                             श्री गणेश  चालीसा  


जय गणपति सद्गुणसदन, कविवर बदन कृपाल। विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल।।

जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण कारण शुभ काजू।।
जै   गजबदन  सदन  सुखदाता। विश्व  विनायक  बुद्धि  विधाता।।
वक्र तुण्ड शुचि सूण्ड सुहावन।  तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन।।
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला।।
पुस्तक पाणी कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फुलं।।
सुन्दर पीताम्बर तन साजित साजित।चरण पादुका मुनि मन राजित।।
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विख्याता।।
ऋद्धि -सिद्धि तव चंवर सुधारे। मूषक वाहन सोहत द्वारे।।
कहौं जन्म शुभ - कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगलकारी।।
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी।।
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।।
अतिथि जनि कै गौरी सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी।।
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा।।
मिलहि पुत्र तुहि,बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण,यहि काला।।
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम, रूप भगवाना।।
अस कहि अन्तर्धान रूप हवै। पलना पर बालक स्वरुप हवै।।
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नाहिं गौरि समाना।।
सकल मगन , सुखमंगल गावहिं। नभ ते सुरन,सुमन वर्षावहिं।।
शम्भु ,उमा ,बहु दान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं।।
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आए शनि राजा।।
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक,देखन चाहत नाहीं।।
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर ,न शनि तुहि भायो।।
कहन लगे शनि,मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई।।
नहिं विस्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कह्यऊ।।
पडतहिं, शनि द्रग कोण प्रकाशा। बालक सिर उड़ि गयो अकाशा।।
गिरिजा गिरीं विकल हवै धरणी। सो दुख दशा गयो नहिं वरणी।।
हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्हो लखि सुत को नशा।।
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाये। काटि चक्र सो गज शिर लाये।।
बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो।।
नाम 'गणेश' शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे।।
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा कीन्हें।।
चले षडानन,भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई।।
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें।।
धनि गणेश, कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे।।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई।।
मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी।।
भजत 'रामसुन्दर' प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा।।
अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजे।।

।। दोहा।। 

श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै धर ध्यान। नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान।।
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश। पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश।। 



Shri Ganesh Chalisa

॥Doha॥

Jaya Ganapati Sadhguna Sadana, Kavi Vara Badana Kripaal।
Vighna Harana Mangala Karana, Jaya Jaya Girijaalaal॥

॥Chaupai॥

Jaya Jaya Ganapati Gan Raaju। Mangala Bharana Karana Shubha Kaaju॥
Jaya Gajabadana Sadana Sukhadaataa। Vishva Vinaayaka Buddhi Vidhaata॥
Vakra Tunda Shuchi Shunda Suhaavana। Tilaka Tripunda Bhaala Mana Bhaavana॥
Raajata Mani Muktana Ura Maala। Svarna Mukuta Shira Nayana Vishaala॥
Pustaka Paani Kuthaara Trishoolam। Modaka Bhoga Sugandhita Phoolam॥
Sundara Pitaambara Tana Saajita। Charana Paaduka Muni Mana Raajita॥
Dhani Shiva Suvana Shadaanana Bhraata। Gauri Lalana Vishva-Vidhaata॥
Riddhi Siddhi Tava Chanvara Sudhaare। Mushaka Vaahana Sohata Dvaare॥
Kahaun Janma Shubha Kathaa Tumhaari। Ati Shuchi Paavana Mangala Kaari॥
Eka Samaya Giriraaj Kumaari। Putra Hetu Tapa Kinha Bhaari॥
Bhayo Yagya Jaba Poorna Anoopa। Taba Pahunchyo Tuma Dhari Dvija Roopa॥
Atithi Jaani Kai Gauri Sukhaari। Bahuvidhi Sevaa Kari Tumhaari॥
Ati Prasanna Hvai Tuma Vara Dinha। Maatu Putra Hita Jo Tapa Kinha॥
Milahi Putra Tuhi Buddhi Vishaala। Binaa Garbha Dhaarana Yahi Kaala॥
Gananaayaka, Guna Gyaana Nidhaana। Poojita Prathama Roopa Bhagavana॥
Asa Kahi Antardhyaana Roopa Hvai। Palana Para Baalaka Svaroopa Hvai॥
Bani Shishu Rudana Jabahi Tuma Thaana। Lakhi Mukha Sukha Nahin Gauri Samaan॥
Sakala Magana, Sukha Mangala Gaavahin। Nabha Te Surana Sumana Varshaavahin॥
Shambhu Uma, Bahu Dana Lutavahin। Sura Munijana, Suta Dekhana Aavahin॥
Lakhi Ati Aananda Mangala Saaja। Dekhana Bhi Aaye Shani Raaja॥
Nija Avaguna Guni Shani Mana Maahin। Baalaka, Dekhan Chaahata Naahin॥
Giraja Kachhu Mana Bheda Badhaayo। Utsava Mora Na Shani Tuhi Bhaayo॥
Kahana Lage Shani, Mana Sakuchaai। Kaa Karihau, Shishu Mohi Dikhaai॥
Nahin Vishvaasa, Uma Ur Bhayau, Shani So Baalaka Dekhana Kahyau। ॥
Padatahin, Shani Driga Kona Prakaasha। Baalaka Shira Udi Gayo Aakaasha॥
Giraja Girin Vikala Hvai Dharani। So Dukha Dasha Gayo Nahin Varani॥
Haahaakaara Machyo Kailaasha। Shani Kinhyon Lakhi Suta Ka Naasha॥
Turata Garuda Chadhi Vishnu Sidhaaye। Kaati Chakra So Gaja Shira Laaye॥
Baalaka Ke Dhada Upara Dhaarayo। Praana, Mantra Padha Shankara Darayo॥
Naama 'Ganesha' Shambhu Taba Kinhe। Prathama Poojya Buddhi Nidhi, Vara Dinhe॥
Buddhi Pariksha Jaba Shiva Kinha। Prithvi Kar Pradakshina Linha॥
Chale Shadaanana, Bharami Bhulaii। Rachi Baitha Tuma Buddhi Upaai॥
Charana Maatu-Pitu Ke Dhara Linhen। Tinake Saata Pradakshina Kinhen॥
Dhani Ganesha, Kahi Shiva Hiya Harashe। Nabha Te Surana Sumana Bahu Barase॥॥
Tumhari Mahima Buddhi Badaye। Shesha Sahasa Mukha Sakai Na Gaai॥
Mein Mati Hina Malina Dukhaari। Karahun Kauna Vidhi Vinaya Tumhaari॥
Bhajata 'Raamasundara' Prabhudaasa। Jagaa Prayaga, Kakara, Durvasa॥
Aba Prabhu Daya Dina Para Kijai। Apani Bhakti Shakti Kuchhu Dijai॥

॥Doha॥

Shri Ganesh Yah Chalisa, Path Karai Dhari Dhyan।
Nit Nav Mangal Gruha Bashe, Lahe Jagat Sanman॥
Sambandh Apne Sahstra Dash, Rushi Panchami Dinesh।
Puran Chalisa Bhayo, Mangal Murti Ganesha॥


Thursday, February 7, 2019

BAJRANGBAN LYRICS

                                बजरंगबाण 




निशचय प्रेम प्रतीत ते विनय करैं सनमान। तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करें हनुमान।।

जय  हनुमन्त  सन्त  हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज बिलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु महि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम -पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेट लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जय -जय धुनि सुरपुर में भई।।
अब बिलम्ब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी।।
जय जय लखन प्राण के दाता। आतुर होई दुःख करहु निपाता।। 
जै  गिरिधर  जै  जै  सुख सागर। सुर  समूह समरथ भट - नागर।।
ॐ हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले। बैरिहि मरू बज्र की कीले।।
गदा वज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो।।
ॐकार हुँकार महा प्रभु धाओ। बज्र गदा हनु विलम्ब न लाओ।।
ॐ  ह्रीं  ह्रीं  ह्रीं  हनुमन्त कपीसा। ॐ  हुँ   हुँ   हुँ  हनु अरि उर- सीसा।।
सत्य होहु हरि शपथ पायके। राम दूत धरु मारु धायके।।
जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुःख पावत जान केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत हौं दस तुम्हारा।।
वन उपवन मग गिरि गृह मांहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पायँ परौं कर जोरि मनावौं। येहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।
जय अंजनि कुमार बलवन्ता। शंकर सुवन वीर हनुमन्ता।।
बदन कराल काल कुलघातक। राम सहाय सदा प्रतिपालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि वैताल काल मारी मर।।
इन्हें मारू , तोहि शपथ राम की। राखउ  नाथ मर्यादा  नाम की।।
जनक सुता हरि दास कहावो। ताकी शपथ विलम्ब न लावो।।
जै  जै  जै  धुनि होत अकासा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।
चरण शरण कर जोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।
उठु उठु चलु तोहि राम - दोहाई। पायं परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ  हनु हनु हनु हनु- हनुमन्ता।।
ॐ हं  हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ  सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आननद हमरो।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कौन उबारे।।
 पाठ करैं बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करैं प्राण की।।
यह बजरंग बाण जो जापै। ताते  भूत -प्रेत सब कांपे।।
धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा।।

प्रेम प्रीतितिहि कपि भजै सदा धरै उर ध्यान।।
तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करै हनुमान।।

  
                      

AARTI KIJE HANUMAN LALA KI | आरती कीजै हनुमान लला की।

AARTI KIJE HANUMAN LALA KI | आरती कीजै हनुमान लला की।

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्टदलन रघुनाथ कला की ।।
जाके बल  से  गिरिवर काँपे।  रोग-दोष जाके निकट न झाँके ।। 
अंजनी  पुत्र  महा  बलदाई। सन्तन के प्रभु सदा सहाई ।।
दे  बीरा  रघुनाथ पठाये। लंका जारि सीया सुधि लाये ।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।।
लंका  जारि  असुर  संहारे। सियारामजी के काज सँवारे ।।
लक्मण मूर्छित पडे सकारे। आनि सजीवन प्रान उबारे ।।
पैठि पताल तोरी जम-कारे। अहिरावन की भुजा उखारे।।
बायें भुजा असुर दल मारे। दहिने भुजा सन्तजन तारे ।। 
सुर नर मुनि आरती उतारे। जै  जै  जै  हनुमान उचारे ।।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरति करत अंजना माई ।।
जो हनुमान जी की आरति गावै। बसि बैकुण्ठ परमपद पावे।।
लंका विध्वंस किये रघुराई। तुलसीदास स्वामी आरती गाई ।। 
                                  आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्टदलन रघुनाथ कला की ।।

AARTI KIJE HANUMAN LALA KI | आरती कीजै हनुमान लला की।

  

  Aarti Ki Jai Hanuman Lala Ki, Dushat Dalan Raghunath Kala Ki.
Jake Bal Se Giriver Kaanpe, Rog Dosh Jake Nikat Na Jaanke.
Anjani Putra Mahabaldaye, Santan Ke Prabhu Sada Sahaye.
De Beera Raghunath Pathai, Lanka Jaari Siya Sudhi Laaye.
Lanka So Kot Samundra Se Khayi, Jaat Pavan Sut Baar Na Laiye.
Lanka Jaari Asur Sanhaare, Siya Ramji Ke Kaaj Sanvare.
Lakshman Moorchit Pade Sakare, Aani Sajeevan Pran Ubaare.
Paithi Pataal Tori Jamkare, Ahiravan Ki Bhuja Ukhaare.
Baayen Bhuja Asur Dal Mare, Daayen Bhuja Santajana Tare.
Surnar Muni Aarti Utare, Jai Jai Jai Hanuman Uchaare.
Kanchan Thaar Kapoor Lo Chhai, Aarti Karat Aajana Mai.
Jo Hanumanji Ki Aarti Gaave, Basi Baikuntha Parmpadh Pave.
Lanka Vidhwans Kiye Raghurai, TulsiDas Swami Aarti Gaai.
Aarti Ki Jai Hanuman Lala Ki, Dushat Dalan Ragunath Kala Ki.



SANKATMOCHAN HANUMANASHTAK

                       संकटमोचन  हनुमानअष्टक 



बाल समय रबि भक्षि लियो तब , तीनहुं लोक भयो अँधियारो।
 ताहि सों त्रास भयो जग को , यह संकट काहु सों जात न टारो।।
देवन आनि करी बिनती तब , छाँड़ी दियो रबि कष्ट निवारो। 
को नहिं जानत है जगमें कपि ,संकटमोचन नाम तिहारो।।१।। 

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि , जात महाप्रभु पंथ निहारो।
 चौकिं महा मुनि साप दियो तब , चाहिए कौन बिचार बिचारो।।
कै  द्विज रूप लिवाय महाप्रभु , सो तुम दास के सोक निवारो। 
को नहिं जानत है जगमें कपि , संकटमोचन नाम तिहारो।।२।।

अंगद के सँग लेन गये सिय , खोज कपीस यह बैन उचारो।
 जीवत न बचिहौ हम सों जुं  , बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।। 
हेरि थके तट सिन्धु सबै तब लाय , सिया-सुधि प्रान उबारो। 
को नहिं जानत है जगमें कपि , संकटमोचन नाम तिहारो।।३।।

रावण त्रास दई सिय को तब , राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
 ताहि समय हनुमान महाप्रभु ,जाय महा रजनीचर मारो।।
चाहत सीय अशोक सों आगि सु , दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो। 
को नहिं जानत है जगमें कपि , संकटमोचन नाम तिहारो।।४।।

बान लग्यो उर लक्षिमन के तब , प्राण तजे सुत रावन मारो।
 लै  गृह  बैद्य  सुषेन  समेत , तबै गिरि द्रोन सु बीर उपरो।। 
आनि सजीवन हाथ देई तब , लक्षिमन के तुम प्रान उबारो। 
 को नहिं जानत है जगमें कपि , संकटमोचन नाम तिहारो।।५।।

रावण युद्ध अजान कियो तब , नाग की फाँस सबै सिर डारो।
 श्रीरघुनाथ समेत  सबै  दल , मोह भयो यह संकट भारो।। 
आनि खगेस तबै हनुमान जु , बन्धन काटि सुत्रास निवारो। 
को नहिं जानत है जगमें कपि , संकटमोचन नाम तिहारो।।६।।

बन्धु समेत  जबै  अहिरावन , लै  रघुनाथ पताल सिधारो।
 देविहिं पूजि भलि बिधि सों बलि , देउ सबै मिलि मन्त्र बिचारो।। 
जाय सहाय भयो तब ही , अहिरावन सैन्य समेत सँहारो।
को नहिं जानत है जगमें कपि , संकटमोचन नाम तिहारो।।७।।

काज किये बड़ देवन के तुम , वीर महाप्रभु देखि बिचारो।
 कौन सो संकट मोर गरीब को , जो तुमसों नहिं जात है टारो।।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु , जो कछु संकट होय हमरो।
 को नहिं जानत है जगमें कपि , संकटमोचन नाम तिहारो।।८।।

लाल देह लाली लसे अरु धरि लाल लँगूर
बज्र  देह दानव दलन जय जय जय कपि सूर।। 



Wednesday, February 6, 2019

SRI HANUMAN CHALISA

                 श्री  हनुमान चालीसा 



श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन  तनु  जानिकै  सुमिरौं पवन-कुमार। बल  बुद्धि  बिद्या  देहु  मोहिं  हरहु  कलेस बिकार।।  

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ।।
राम दूत अतुलित बलधामा। अंजनी-पुत्र पवनसुत नामा ।। 
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी ।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा ।।
हाथ ब्रज औ ध्वजा बिराजे। काँधे मूँज जनेऊ साजै ।।
संकर सुवन केसरी नन्दन। तेज प्रताप महा जग बन्दन ।।
बिद्यावान गुनी अति चातुर।राम काज करिबे को आतुर ।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया ।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा ।। 
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे ।।
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा ।।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा ।। 
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना ।।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू ।लिल्यो ताहि मधुर फल जानू ।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।जलधि लाँघि गये अचरज नहीं ।।
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ।।
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावे ।।
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरन्तर हनुमत बीरा ।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ।।
सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ।।
और मनोरथ जो कोई लावै । सोइ अमित जीवन फल पावै ।।
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ।।
साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकन्दन राम दुलारे ।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ।। 
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ।।
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई । जँहा जन्म हरि-भक्त कहाई ।।
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ।।
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।
जै  जै  जै  हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरु देव की नाईं ।।
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ।।

पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।
      राम लषन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ।।     
           



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